सारंगढ़ शिकारियों के आगे बेबस वन विभाग-शिकारी कर रहें जंगल का सफाया

जंगल से फिर उठा सवाल – वन विभाग की नाकामी या शिकारियों की दबंगई?

सारंगढ़। क्षेत्र के जंगलों में शिकार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। ताज़ा मामला सारंगढ़ के जंगलों से सामने आया है, जहाँ एक भालू का शिकार करने वाले दो शिकारियों को गिरफ्तार किया गया है। बताया जा रहा है कि वन परिक्षेत्र बरमकेला के ग्राम पंचायत कपरतुंगा में एक तालाब में भालू के बाल, खाल और सिर तैरता हुआ ग्रामीणों को दिखाई दिया तब जाकर वन विभाग को ग्रामीणों ने जानकारी दी फ़िर मौके पर वन विभाग की पूरी टीम पहुंची और मामले की जांच किया गया तो पता चला एक भालू का शिकार कर शिकारियों ने मांस खा गए है और बचे अवशेष तालाब में फेक दिया गया जिससे मछली खाकर खत्म कर देगा और किसी को पता नहीं चलेगा लेकिन मामला तैरती हुई उजागर हो गया वन विभाग की टीम ने डॉग स्कॉट की टीम के साथ जांच शूरू की दो आरोपी जुगलाल सिदार और ज्योति राम सिदार को गिरफ्तार किया गया है वहीं शिकार की घटना को छिछपानी के 942पी एफ के जंगल को अंजाम दिया गया है फिलहाल सूत्र से जानकारी मिल रहा की इस पूरे भालू हत्या काण्ड में दर्जनों लोग शामिल है

मामला यहीं खत्म नहीं होता—बीते कुछ महीने पीछे बाघ का शिकार और फिर कुछ महीने बाद में तेंदुए का शिकार की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं। और अब भालू यह घटनाएँ वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े करती हैं। आखिर जंगलों में सुरक्षा व्यवस्था कहाँ है? स्थानीय लोगों का कहना और पुराने घटनाओं से अनुमान लगाया जा सकता है कि वन विभाग सिर्फ कागज़ी कार्यवाही करता है, जबकि जंगलों में शिकारियों के गिरोह बेखौफ़ घूम रहे हैं। कभी तेंदुआ, कभी बाघ और अब भालू का शिकार—यह साफ संकेत है कि वन विभाग की गश्त और खुफिया तंत्र पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है।

वन्यजीव संरक्षण कानून सख्त होने के बावजूद बार-बार शिकार की घटनाएँ होना वन विभाग की लापरवाही और मिलीभगत की बू देता है। यदि इसी तरह वन्यजीवों का सफाया होता रहा तो आने वाले समय में जंगलों से बाघ, तेंदुआ और भालू जैसे दुर्लभ प्राणी गायब हो जाएंगे। और जब कोई शिकार होता है तो विभाग आरोपी को पकड़ कर कार्यवाही करती है लेकिन वन विभाग अपनी लापरवाही पर पर्दा डालने में लग जाती है और दिखावे के लिए बलि का बकरा या तो बिट गार्ड या ज्यादा से ज्यादा डिप्टी रेंजर पर कार्यवाही कर उसके ऊपर के अधिकारी बच निकलते है जबकि यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि अगर ऊपर के अधिकारी ही अगर जंगल और जीवों की सुरक्षा को लेकर अगर शख्त होते तो निचले स्तर के कर्मचारी भी पूरी मुस्तैदी से काम करते फिलहाल देखना होगा कि विभाग पर किन कर्मचारियों पर कार्यवाही की गाज गिरता है और इसे मामले में और कितने आरोपी की गिरफ्तारी होती है

वन विभाग पर उठ रहे कई मुख्य सवाल
क्या वन विभाग केवल शिकार होने के बाद औपचारिक गिरफ्तारी और प्रेस नोट तक सीमित है?
लगातार तीन बड़े शिकार मामलों के बावजूद अब तक विभाग की अंदरूनी जांच क्यों नहीं हुई?
क्या शिकारी इतने प्रभावशाली हैं कि उन्हें वन विभाग का कोई डर नहीं?